अग्नि स्तंभन मंत्र- अनेक बार ऐसा भी देखा गया है कि गांवों में कोई आग को बांधने का मंत्र पढ़ता है जिससे आग आगे न बढ़ने पाए। कई लोग ऐसे भी हैं जो आग को बांधकर आग पर से ऐसे गुजरते हैं जैसे वे जमीन पर से गुजर रहे हों, उन पर आग का प्रभाव नहीं पड़ता। तांत्रिक प्रायः ऐसा करते देखे जा सकते हैं। उन पर आग का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ता। नीचे अग्नि स्तंभन मंत्र दिए जा रहे हैं-
मंत्र
ॐ नमः अग्निरूपाय मे देहि स्तम्भय कुरु कुरु स्वाहा।
इस मंत्र से मेढ़क की चर्बी को 108 वार अभिमंत्रित करके मालिश कर लेजे
से शरीर पर आग का प्रभाव नहीं पड़ता है।
मंत्र
ॐ नमो अग्नि रूपाय मम शरीरे स्तम्भन कुरु कुरू स्वाहा।
इसको पहले 10 हजार बार जाप कर सिद् कर लिया जाता है। फिर इस मंतर से सोंठ, काली मिर्च तथा पीपल को 108 बार अभिमंत्रित करके पहले अच्छी तरह चबा लें, तत्पश्चात आग का प्रभाव नहीं होता है।
जल स्तंभन मंत्र-जिस तरह लोग आग को स्तंभित करके उस पर चलते
उसी प्रकार ऐसे अनेक महात्माओं को देखा गया है, जो पानी के ऊपर चलते हैं। वे लोग जल को स्तंभित कर उस पर से गुजरते हैं।
मंत्र
ॐ नमो भगवते रूपाय जलस्तम्भाय ठः ठः ठः स्वाहा।
इस मंत्र को पहले सवा लाख बार जाप करके सिद्ध कर लेना चाहिए। उसके बाद घड़ियाल की चर्बी तथा हुंडम पक्षी की खोपड़ी को लेकर अच्छी
तरह एक साथ कूट-पीसकर मिलाकर तेल में पकाते हैं। इस तेल को लोहे के पात्र में रखकर कृष्ण पक्ष की अष्टमी में पूजा करके उसमें 1008 बार आहुति देकर तेल को पूरे शरीर में लेप करने के बाद व्यक्ति पानी पर निर्भय होकर चल सकता है।
मंत्र
ॐ नमो भगवते रूद्राय जलस्तम्भय स्तम्भयः ठः ठः स्वाहा।
कहा जाता है कि पद्माक्ष चूर्ण को उक्त मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित कर जल में डालने से प्रवाह रुक जाता है। नमक डालने पर प्रवाह खुल जाता है।
मंत्र
एं अस्फोट पति धारा उल्मू अका क्रां क्रां क्रां।
खटकुली पक्षी के पंख को इस मंत्र से 1108 बार अभिमंत्रित कर पंख को बगल में दबाकर जल में खड़ा होने से भी प्रवाह रुक जाता है।
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